अधिकांश लोगों के मन में यह सवाल होता है,किस का त्याग करने पर मनुष्य का मन शांत हो जाता है? इस लेख में शास्त्रानुसार सभी महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया गया है।
जिस प्रकार पेट का मल त्यागने से पेट हल्का और शांत हो जाता है, इसी प्रकार मन का मल त्यागने से मन हल्का और शांत हो जाता है। अब सवाल यह है कि मन का मल किसे कहते हैं ? तो काम , क्रोध और लोभ मुख्य रूप से यही मन का मल है और यहीं से मनुष्य के अंदर मोह और अहंकार उत्पन्न होती है। अगर इस बारें में विस्तार से जानने के इच्छुक हैं, तो इस लेख को पूरा पढ़ें। मुझे विस्वास है, यह जानकारी आपको अपने मन को नियंत्रित करने में काफी सहायता करेगी। साथ ही इन बातों का अनुशरण करके आप अपने जीवन के निर्धारित लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
काम क्रोध और लोभ का अर्थ क्या है ?
काम क्रोध और लोभ का अर्थ :
- काम : वह अग्नि है जिसमें व्यक्ति शुभ व अशुभ तथा सही व गलत का विचार नहीं कर पाता है। सिर्फ अपने फायदे को सोच कर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं, जिस कारण बाद में परेशानी बढ़ती है। जैसे हम कार्य करते है हमें फल भी वैसा ही मिलेगा। वहीं एक कर्मयोगी इंसान हमेशा कर्म पर विश्वास रखता है व फल की इच्छा नहीं करता। जो व्यक्ति सही कर्म करता है, ईश्वर का हर समय स्मरण करता है, दूसरों की सेवा करता है वह जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। उनका मन कभी अशांत नहीं हो सकता।
- क्रोध : क्रोध ऐसा राक्षस है, जो क्रोध करने वाले का विनाश पहले करता है। क्रोध हिंसा को जन्म देता है। बहुत सामान्य विवाद की स्थिति होने पर ही क्रोध में आकर कोई व्यक्ति किसी की जान तक ले सकता है।
- लोभ : लोभ तो ऐसी बुरी वृत्ति है जिसके चंगुल में एक बार यदि फंस गए, फिर उससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो सकता है। परिवार में ही किसी की संपत्ति का लोभ,व्यवसाय में ही लोभ के चक्कर में कुछ गलत कार्य व यहां तक कि मित्रों से ही लोभ के कारण विवाद इत्यादि कर्म ऐसे हैं, जिससे सिर्फ व सिर्फ कष्ट व दुख मिलना है।
त्रिविधं नरकसयेदँ द्वारं नाशनमात्मनः।
– गीता :अध्याय 16 श्लोक 21
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्रयं त्यजेत।।
भावार्थ: परमपिता भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि नरक के तीन द्वार हैं काम,क्रोध तथा लोभ। आत्मा को अधोगति में ले जाने वाले ये तीनों विकार हैं। काम, क्रोध व लोभ आत्मा का नाश कर देते हैं। इसलिए इन तीनों दोषों का समूल नाश कर देना चाहिए।
किस का त्याग करने पर मनुष्य का मन शांत हो जाता है?
काम, क्रोध और लोभ मन को अशांत करता है, इसका त्याग करने मात्र से ही मनुष्य का मन शांत हो जाता है !

काम की चिंता या किसी उम्मीद के पूरा नहीं होने पर भी मन अशांत होता है। दिमाग में तरह तरह की बाते आने लगती है।
जैसा की हमने ऊपर आपको बताया कार्य दो तरह के होते हैं, उसमे जो कार्य पहले सोच विचार कर किया जाता है।
उसकी चिंता कभी हमें नहीं सताती है। यहाँ काम का साधारण सा उदाहरण दिया, जो आजकल देखी जाती है। जब किसी तीव्र इच्छा की पूर्ति में बाधा आती है तो क्रोध का जन्म होता है।
यदि किसी मनुष्य को किसी से भी कुछ नहीं चाहिए तो उसे कभी क्रोध नहीं आएगा। चूंकि मनुष्य का अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं है, इसलिए समाज में बहुत अधिक मात्रा में क्रोध विद्यमान रहता है।
किसी बात का क्रोध से आप ज्यादा चिंतित और अशांत रह सकते हैं। क्योंकि क्रोध में आप सही काम कर ही नहीं सकते जिससे बाद में आपको भय के कारण मन शांति कही खो जाती है। तरह तरह के बुरे विचार मन में आने लगते हैं।

लोभ हमेशा आपको गलत रास्ते पर ले जाती है। लोभी व्यक्ति आचरण से हीन हो जाता है वह अपने स्वाभिमान को भुलाकर किसी कामना के वशीभूत होकर चाटुकार बन जाता है, उसका अपना व्यक्तित्व नष्ट हो जाता है और किसी से कुछ पाने की आशा में अपना सब कुछ गंवा देता है।
लोभ एक क्षणिक प्यास की तरह है जिसकी पूर्ति के लिए मनुष्य अनैतिक बन जाता है और गलत-काम करने लगता है। वह भूल जाता है कि उसके जीवन की कुछ मर्यादाएं भी हैं।
हम अपने जीवन में ऐसा ही अनुभव करते हैं कि थोड़े से सुख, थोड़े से लाभ, एक-आध ऊंची कुर्सी पाने के लिए ऐसे लोगों के पैर छूने लगते हैं जो स्वयं चारित्रिक दृष्टि से गिरे होते हैं।
जब हम लोभ करते हैं, तो हमारा पूरा व्यक्तित्व दीन, हीन और दरिद्र बनकर खड़ा हो जाता है जिससे हमारी अपनी जीवनशक्ति शरीर में हो रहे जैविक परिवर्तन से बुरी तरह आहत होने लगती है और हमारे जीवन में जो स्वाभिमान की ऊर्जाशक्ति है वह दासत्व ग्रहण करने लगती है।
सुखी जीवन के सूत्र : मन शांति के लिए इसे ध्यान रखें।
- जिस कार्य को समाज से छुपाना पड़े वह कार्य न करें
- हर परिस्थिति में धैर्य धारण करना सीखें
- मन को नियंत्रित करना सीखें, चंचल मन पर पाएं विजय
- धर्म के जहाज पर चढ़ने के लिए अधर्म के मार्ग को त्याग दें
- जीवन में दया, क्षमा, मैत्री, संयम, चित्त में श्रद्धा को अपनाएं
- किसी भी बात का अभिमान न करें, सत्य का मार्ग अपनाएं
- अधर्मियों, ठगी करने वालों को न सम्मान दें न उसने सम्मान लें
निष्कर्ष : ये जरूर पढ़ें
किस का त्याग करने पर मनुष्य का मन शांत हो जाता है?
हम हमेशा से सुनते-पढ़ते चले आ रहे हैं, कि जीवन में कल्याण के मार्ग में क्रोध, काम, लोभ और मोह ही सबसे बड़ी बाधा हैं। इन्हें छोड़ने पर ही जीवन के परम आनंद की प्राप्ति हो सकती है, जो मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। यह सारा संसार काम से ही उत्पन्न हुआ है और काम में ही जी रहा है। यदि काम का अंत हो जाए, तो श्रृष्टि का संचालन ही रुक जाएगा। काम ही मनुष्य को परिवार बनाने और उसे पोषित करने के लिए प्रेरित करता है,
हालाकि शास्त्रों में “काम” शब्द को हमेशा सेक्स के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। अनेक प्रसंगों में काम का अर्थ कामना भी है,जब कहा जाता है कि सब काम छोड़कर ईश्वर का भजन करो, तो इसका मतलब है, सभी कामनाओं को छोड़कर निष्काम भाव से भजन करो।
सही समय पर क्रोध करना बहुत आवश्यक है, यदि कोई आपके घर में घुसकर आपके परिवार को प्रताड़ित करने लगे और उन्हें अपशब्द कहने लगे, तो आपको क्रोध करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। क्रोध का आवेश नहीं आएगा, तो आप उस आततायी से परिवार की रक्षा कैसे कर पाएँगे. हाँ, इतना ज़रूर है कि प्रसंग समाप्त हो जाने पर आप पूरी तरह सामान्य हो जाएँ। यही बात क्रोध के विषय में भी लागू होती है।
अब लोभ की बात करते हैं. इस सम्बन्ध में कहा गया है कि श्रृष्टि में सभी प्राणी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन एक व्यक्ति के लोभ को पूरा करने के लिए भी सारे संसाधन कम पड़ जाते हैं। लोभ भी अनेक तरह के होते हैं, कुछ लोभ जीवन के लिए बहुत ज़रूरी हैं।
परिवार के लिए सुख-संपत्ति अर्जित करने का लोभ, यश पाने का लोभ, मान-सम्मान पाने का लोभ, ज्ञान अर्जित करने का लोभ। इस तरह लोभ अपने आप में बुरा नहीं है, सिर्फ उसकी सीमा को समझकर उस पर नियंत्रण रखना चाहिए।
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