शंकराचार्य की पूरी जानकारी: सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरु
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शंकराचार्य की पूरी जानकारी: सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरु

शंकराचार्य की पदवी के महत्व और उनकी भूमिका को स्पष्ट रूप से समझना है। तो ये पोस्ट आपके लिए है, यहाँ शंकराचार्य कौन होते हैं और वे वर्तमान में कैसे चुने जाते हैं ? वर्तमान में कितने शंकराचार्य हैं और क्या परमाणु जैसे शक्ति को केवल दृस्टि मात्र से निस्त्नाभूत कर सकते हैं शंकराचार्य ? यह लेख शंकराचार्य के जीवन और कार्यों का एक संक्षिप्त परिचय प्रदान करता है। यह लेख पाठकों को शंकराचार्य के बारे में अधिक जानने के लिए प्रोत्साहित करेगा।आइये जानें शंकराचार्य की पूरी जानकारी आसान भाषा में-

संक्षिप्त परिचय: शंकराचार्य कौन होते हैं?

शंकराचार्य सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरु होते हैं। वर्तमान समय में शंकराचार्य एक उपाधि, एक पदवी है। इस पदवी को एक युग पुरुष आदि शंकराचार्य के नाम से दी जाती है। इतिहास उन्हें सनातन धर्म की पुनः स्थापना का श्रेय देती है। प्रथम शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की, जिनमें शृंगेरी शारदा पीठ, द्वारिका पीठ, गोवर्धन पीठ और जगन्नाथ पीठ शामिल हैं। इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है।

चुनाव प्रक्रिया : शंकराचार्य कैसे चुने जाते हैं?

शंकराचार्य पदवी को प्राप्त करना आसान नहीं है। सबसे पहले ब्राह्मण होना अनिवार्य है। उसके बाद, शंकराचार्य पदवी के लिए चुने जाने वाले व्यक्ति को आखाड़ो के प्रमुखों, महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की सहमति प्राप्त करना पड़ता है। उसके बाद शंकराचार्य की पदवी मिलती है।

वर्तमान शंकराचार्य के चयन प्रक्रिया

सहमति प्राप्त करने के लिए कुछ आवश्यक योग्यता भी पूरी करनी होती है। इसके लिए सबसे पहले संन्यासी बनना पड़ता है। संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना जरूरी है। इसके अलावा, शंकराचार्य बनने के लिए तन मन से पवित्र होना चाहिए। इसके लिए चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञान होना चाहिए।

वर्तमान शंकराचार्य के नाम और शंकराचार्य के चार पीठ

वर्तमान में भारत में शंकराचार्य के रूप में चार पीठ हैं, जिनके प्रमुख शंकराचार्य हैं:

  1. शृंगेरी मठ (रामेश्वरम) : इस मठ के वर्तमान में जगद्गुरु भारती तीर्थ जी शंकराचार्य हैं। इस मठ में यजुर्वेद को रखा गया है। यहाँ दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम में ‘सरस्वती’, ‘भारती’ और ‘पुरी’ लगाया जाता है।
  2. गोवर्धन मठ (पुरी,ओडिशा) : इस मठ के वर्तमान में निश्चलानंद सरस्वती जी शंकराचार्य हैं। इस मठ में ऋग्वेद को रखा गया है। यहाँ दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम में ‘अरण्य’ लगाया जाता है।
  3. ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ, उत्तराखंड) : इस मठ के वर्तमान में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी हैं। इस मठ में अथर्ववेद को रखा गया है। यहाँ दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम में गिरि, पर्वत और सागर लगाया जाता है।
  4. शारदा मठ (द्वारिका,गुजरात): इस मठ के वर्तमान में शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी हैं। इस मठ में सामवेद को रखा गया है। यहाँ दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम में तीर्थ या आश्रम लगाया जाता है।

ये चार पीठ अपने क्षेत्र में अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को बचाने और संस्कृति को बनाए रखने का कार्य करते हैं। हर चार पीठों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है और वे भारतीय धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य के स्रोत हैं।

वर्तमान शंकराचार्य के कार्य

वर्तमान में, शंकराचार्य चारों मठों के प्रमुख होते हैं। वे अपने-अपने मठों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा, वे सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए भी कार्य करते हैं।

शंकराचार्य के वर्तमान कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अपने-अपने मठों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होना।
  • सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार और प्रसार करना।
  • विभिन्न मतों और संप्रदायों के बीच एकता स्थापित करने का प्रयास करना।
  • सामाजिक और धार्मिक सुधार के लिए कार्य करना।

शंकराचार्य विभिन्न मतों और संप्रदायों के बीच एकता स्थापित करने का भी प्रयास करते हैं। वे विभिन्न मतों और संप्रदायों के नेताओं के साथ बैठकें करते हैं और सद्भाव और सहयोग के लिए काम करते हैं।

शंकराचार्य सामाजिक और धार्मिक सुधार के लिए भी कार्य करते हैं। वे सामाजिक कुरीतियों को दूर करने और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं।

वर्तमान में, शंकराचार्य के कार्यों को लेकर कुछ विवाद भी हैं। कुछ लोगों का मानना है कि शंकराचार्य के कार्यों में पारंपरिक मूल्यों की अनदेखी हो रही है। अन्य लोगों का मानना है कि शंकराचार्य के कार्यों में सनातन धर्म की आधुनिक आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है।

शंकराचार्य की पूरी जानकारी

इस पदवी को विस्तार से समझने के लिए हजारों साल पहले भारत में जन्मे पहले शंकराचार्य को समझना होगा। जिनके नाम से ये उपाधि या पदवी दी जाती है। जिनका जन्म 788 ईस्वी में केरल के कालडी गांव में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे और बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्होंने 12 साल की उम्र में ही गृह त्याग कर दिया और संन्यासी बन गए। सनातन के इतिहास में एक ऐसे युग पुरुष जिन्होंने अपने जीवन के अंतिम काल तक धर्म की स्थापना का कार्य किया। सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरु और कोई नहीं आदि शंकराचार्य की को माना जाता है।

इस लेख में मैंने आपको वर्तमान शंकराचार्य उनके चयन प्रक्रिया उनके कार्यो को बताया। अगले भाग में सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरु आदि शंकराचार्य के बारे विस्तार जानेंगे। अगर आपने इस ब्लॉग को अभी तक सब्सक्राइब नहीं किया तो नीचे लाल नोटिफिकेशन बेल को दवाकर Allow ऑप्शन का चुनाव करें। साथ ही इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर करें।

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