Veer Kunwar Singh Biography In Hindi : वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय में हम उनके सम्पूर्ण वीर गाथा की चर्चा करेंगे। हम जानेंगे उनका जन्म कब और कहाँ हुआ, उनके परिवार के बारे में, उनकी कहानी कि कैसे उन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अद्भुत वीरता के साथ लड़ाई लड़ी और कब उन्होंने वीरगति पाई । बाबू वीर कुंवर सिंह जी की जयंती को लेकर लोगों में उलझन है, इंटरनेट पर जब इस चीज को आप ढूंढेंगे तो कहीं 13 नवंबर तो कहीं 23 अप्रैल बताई गयी है। तो आपसे आग्रह है, इस पोस्ट में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह की जीवनी को पूरा पढ़कर कमेंट बॉक्स में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करें।
संक्षिप्त जीवन परिचय : वीर कुंवर सिंह कौन थे ?
प्रसिद्ध क्रन्तिकारी वीर कुंवर सिंह जन्म 23 अप्रैल 1777 को बिहार में हुआ था। उन्होंने साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों नेतृत्व किया।
अंग्रेजी हिस्टोरियन होम्स ने अपनी किताब में उनके बारे में लिखा है:
” उस 80 साल बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता विरूद्ध अद्भुत वीरता के साथ लड़ाई लड़ी। अगर वह जवान होता तो शायद अंग्रेजो को साल 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता। “
– ब्रिटिश इतिहासकार होम्स
23 अप्रैल 1858, में जगदीशपुर के पास ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों के साथ युद्ध में बुरी तरह घायल होने के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों को पूरी तरह खदेड़कर जीत हासिल की। लेकिन अपने किले में लौटने के बाद 26 अप्रैल 1858 को उन्होंने वीरगति पाई।
Veer Kunwar Singh Biography In Hindi ( वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय )
नाम | वीर कुंवर सिंह |
जन्म | 23 अप्रैल 1777 |
जन्म स्थान | भोजपुर जिले के जगदीशपुर |
पिता का नाम | बाबू साहबजादा सिंह |
वीरगति | 26 अप्रैल 1858 |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी |
सम्पूर्ण जीवन परिचय वीर कुंवर सिंह
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के शाही उज्जैनिया राजपूत परिवार में 23 अप्रैल 1777 को हुआ था।
बिहार में 1857 की क्रांति की बागडौर कुंवर सिंह के पास थी, वे 80 साल के वृद्धावस्था में स्वतंत्रता सेनानियों की अगुआई कर रहे थे।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध साहस के साथ विद्रोह का नेतृत्व करने वाले कुंवर सिंह जोकि राजा शाहबजादा सिंह और रानी पंचरतन देवी के घर, बिहार राज्य के शाहाबाद के परमार शाही घराने से सम्बन्ध रखते थे।
बाबू कुंवर सिंह का पूरा परिवार भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा था। इनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह तथा बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह भी उन्ही के परिवार के लोग थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ अपनी वीरता और पराक्रम का परिचय दिए।
1857 के सिपाही विद्रोह के समय, ब्रिटिश सेना ने अनेकों तबके में फैले विद्रोह को कुचल दिया था। जब मेरठ से क्रांति का बिगुल बजा तो जंगल की ज्वाला की भाँती यह संदेश बिहार और सम्पूर्ण भारत में तेजी से फेल गया ।
इस दौरान वीर कुंवर सिंह ने बिहार के लोगों के बीच विद्रोह का प्रचार किया और उन्हें विद्रोह में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद बिहार के कई क्षेत्रों में भी विद्रोह फैला।
वीर कुंवर सिंह को बिहार के लोगों ने अपनी नेता चुना था, उनका साहस और धैर्य काफी ऊँचा था। उनकी आयु 80 के पार होने के बाद भी वे लोगों को विद्रोह में संगठित करने में सक्षम रहे।
उन्होंने स्थानीय लोगों के बीच विद्रोह की प्रेरणा दी और समर्थन किया। वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में बिहार के कुछ क्षेत्रों में भारी संख्या में विद्रोहकारी जुट गए थे।
20 अप्रैल 1858 को आजमगढ़ पर कब्जे के बाद रात में कुंवर सिंह बलिया के मनियर गांव पहुंचे थे। 22 अप्रैल को सूर्योदय की बेला में शिवपुर घाट बलिया से एक नाव पर सवार हो गंगा पार करने लगे। इस दौरान अंग्रेजों की गोली उनके बांह में लग गई।
तब उन्होंने यह कहते हुए कि ‘लो गंगा माई! तेरी यही इच्छा है तो यही सही’ खुद ही बाएं हाथ से तलवार उठाकर उस झूलती हाथ को काट गंगा में प्रवाहित कर दिया था। उस दिन बुरी तरह घायल हो गए थे । लेकिन कुंवर सिंह ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और उन्होंने जगदीशपुर किले से यूनियन जैक का झंडा उतार कर ही दम लिया।
हालांकि बाद में वे अपने हाथ के गहरे जख्म को सहन नहीं पाए और अगले ही दिन 26 अप्रैल 1858 को वे मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे।
आखिरी शब्द : बाबू वीर कुंवर सिंह
बाबू वीर कुंवर सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था और उनका समर्थन किया गया था। उन्हें एक महान योद्धा, संगठनकर्ता, उत्तेजक, उपदेशक, और स्वतंत्रता संग्राम के महान स्मरणों में से एक माना जाता है। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान योद्धा थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने अपने वीरता और साहस के कारण भारतीयों के बीच एक लोकप्रिय व्यक्तित्व बनाया था। उन्हें सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम के शौर्य वर्धन पदक से सम्मानित किया है।
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